हरिराम भोपा जी के पास लकड़ी के धुएँ में सांस लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
भारत के राजस्थान के जैसलमेर शहर में स्थित अपने एक कमरे के घर में, वह अपनी आजीविका रावण हत्था, एक लकड़ी के पारंपरिक धनुषाकार तार वाला वाद्य यंत्र जिसे वायलिन का पूर्वज माना जाता है, बनाकर कमाते हैं। वह लकड़ी में छेद करने के लिए लोहे की छड़ों को गर्म करने के लिए आग का उपयोग करते हैं, और यह धुआँ उनके पिता उगमाराम जी की एक खट्टी-मीठी याद को ताज़ा करता है, जो स्वयं भी रावण हत्था बनाने वाले एक प्रसिद्ध कारीगर थे।
“किसी दिन,” उनके पिता कहा करते थे, “यह धुआँ हम सब को मार डालेगा।”
उगमाराम भोपा जी की मृत्यु 15 साल पहले अस्थमा की बीमारी से हुई थी। अब 42 वर्षीय हरिराम जी भी अस्थमा की बीमारी को झेल रहे हैं।
हरिराम भोपा जी ने बताया, “जब मैं जवान था तो मैंने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही है, मैं इसके प्रभाव को महसूस कर रहा हूँ।”
लकड़ी की आग से खतरनाक प्रदूषक उत्पन्न होते हैं, जैसे कण के रूप में मौजूद पदार्थ, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड।
घाव पर नमक छिड़कते हुए, जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में वायु प्रदूषण को और खराब कर रहा है, खासकर तब जब ग्लोबल वार्मिंग ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अन्य जगहों पर जंगल की आग में भारी वृद्धि की है। बढ़ते शोध के अनुसार, फेफड़ों में होने वाली समस्याएँ तेज़ी से बढ़ रही है, खासकर भारत जैसे देशों में जहाँ अत्यधिक गर्मी और प्रदूषण दोनों ही बढ़ रहे हैं।
हालाँकि, लकड़ी जलाने से उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषक भारत में यंत्र बनाने वाले कारीगरों के लिए सीधा खतरा हैं, इस समस्या को और बढ़ाता है जलवायु परिवर्तन से बढ़ने वाला तापमान, क्योंकि इससे वे ओज़ोन और द्वितीयक प्रदूषकों के संपर्क में ज़्यादा आते हैं।
भोपा जी बताते हैं, “पहले, एक कलाकार 65 साल की उम्र के बाद ही अस्थमा से पीड़ित होता था, लेकिन अब यह 35 साल की उम्र में ही आम हो गया है। मुझसे पहले भी कलाकारों की कई पीढ़ियों ने रावण हत्था बनाया है और उनके पास स्वच्छ ईंधन तक पहुँच भी नहीं थी, लेकिन किसी को भी इतनी गंभीर समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।”
वायु प्रदूषण एक वैश्विक खतरा है
2022 में अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, प्रशांत महासागर की तरफ कैलिफोर्निया में, पीएम 2.5 नामक वायु प्रदूषक और भीषण गर्मी दोनों के अल्पकालिक संपर्क से जान जाने का खतरा बढ़ा है। और भीषण गर्मी और प्रदूषकों के एक साथ संपर्क में आने से होने वाले प्रभाव व्यक्तिगत प्रभावों के योग से कहीं ज़्यादा हैं। पीएम 2.5 माइक्रोमीटर से भी छोटे कण होते हैं जो फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर जाते हैं, जिससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन हो जाती हैं।
शोध पत्र के मुख्य लेखक और ट्युलेन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के पर्यावरण स्वास्थ्य विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर मुस्तफ़िज़ूर रहमान ने बताया, “भीषण गर्मी और पीएम 2.5 के सह-संपर्क से जुड़ा जान जाने का अतिरिक्त खतरा, अकेले भीषण गर्मी या पीएम 2.5 के संपर्क में आने के अनुमानित प्रभाव से लगभग तीन गुना ज़्यादा था।”
वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी के फलस्वरूप जारणकारी तनाव उत्पन्न होता है, जिसमें प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों नामक हानिकारक अणुओं का निर्माण शरीर द्वारा उन्हें बेसर करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
रहमान जी ने समझाया, “एंटीऑक्सीडेंट इन अणुओं को साफ करने में मदद करते हैं, लेकिन वायु प्रदूषण और भीषण गर्मी इस संतुलन को बिगाड़ते हैं।”
लंबे समय तक होने वाले प्रभावों के अतिरिक्त, गर्मी और वायु प्रदूषण दिल के दौरे और स्ट्रोक का कारण भी बन सकते हैं।
यह समस्या पहले से ही भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बनी हुई है, जहाँ पीएम 2.5 प्रदूषण ने औसत अनुमानित जीवन-काल को 5.3 वर्ष कम कर दिया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया के केक स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर और 2022 के शोध पत्र के सह-लेखक डॉ. रॉब मैककोनेल कहते हैं, “भीषण गर्मी और अत्याधिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले दिनों में, हमने हृदय संबंधी मौतों में लगभग 40% की वृद्धि देखी है।”
भीषण गर्मी वायु प्रदूषण को और भी ज़्यादा खराब बना देती है
जर्मनी के IUF- लीबनिज़ रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंटल मेडिसिन में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता निधि सिंह ने बताया, “उच्च तापमान और उच्च सोलर रेडिएशन के दौरान, मिट्टी, वनस्पति और उद्योगों से निकलने वाले वाष्पशील कार्बनिक यौगिक मुख्य रूप से परिवहन क्षेत्र से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड के साथ मिलकर द्वितीयक वायु प्रदूषक ओज़ोन बनाते हैं, जो आगे जाकर वायुमंडल में प्रतिक्रिया करके द्वितीयक कण पदार्थ बनाते हैं।” उच्च तापमान भी ज़्यादा ओज़ोन और द्वितीयक कार्बनिक वतिलयन के निर्माण को बढ़ावा देता है जो ज़्यादा कण पदार्थ के निर्माण की ओर ले जाता है, जिससे एक दुष्चक्र बनता है।
भीषण गर्मी के दौरान, मानव शरीर तेज़ और गहरी साँस लेकर खुद को ठंडा करने की कोशिश करता है। वेंटिलेशन दर बढ़ने से शरीर ज़्यादा वायु प्रदूषक अंदर लेता है जबकि ठंडा होने की कोशिश शरीर की हानिकारक रसायनों को बाहर निकालने की क्षमता में बाधा डालती है, जिससे खतरा बढ़ जाता है।
ओज़ोन के संपर्क में आना खांसी, साँस लेने में तकलीफ, साँस के इंफेक्शन, अस्थमा के दौरे और फेफड़ों में सूजन का कारण बन सकता है। साँस संबंधी बीमारियों के अलावा, दीर्घकालिक प्रभावों में नर्वस सिस्टम और प्रजनन प्रणाली को नुकसान, कैंसर और चयापचय संबंधी विकार शामिल हो सकते हैं।
वायु प्रदूषण और गर्मी के बीच के संबंध को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने अप्रैल 2023 में 24 देशों के 482 स्थानों के डेटा का विश्लेषण किया। एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित इस शोध में उन्होंने पाया कि कई वायु प्रदूषक गर्मी के खतरे को काफी हद तक बढ़ा देते हैं, जिससे हृदय और साँस संबंधी समस्याओं से होनी वाली मृत्यु की दर बढ़ गई है।
लुप्त होती विरासत
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के मनकापुर गांव में रह रहे 66 वर्षीय नारायण देसाई जी हर रोज़ दो घंटे तक लकड़ी में 3, 17 सेंटीमीटर की लोहे की छड़ें गर्म करके एक और पारंपरिक वाद्य यंत्र शहनाई बनाते हैं, जिसके एक तरफ डबल रीड और दूसरी तरफ एक चमकती हुई धातु की घंटी होती है। वे सदियों पुराने लकड़ी के वाद्य यंत्र को हाथ से बनाने की लुप्त होती कला का अभ्यास करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोत का खर्च नहीं उठा सकते हैं, जिसे स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जी ने विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया था।
देसाई जी बताते हैं, “लोहे की छड़ों के साथ काम करना कभी भी आसान नहीं था क्योंकि इससे जलने के कारण मुझे पहले भी कई बार तीसरे-दर्जे के घाव हुए हैं, लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन धुआँ मुझसे यह कला छीन लेगा।” वह बोलते समय साँस लेने के लिए लंबा विराम लेते हैं। अब वह अपने बनाए वाद्ययंत्रों को बजाने के लिए साँस नहीं ले पाते। वह बताते हैं, “मैंने 2022 में इसे बजाने की कोशिश की थी लेकिन मेरे फेफड़े बहुत कमज़ोर हो गए हैं, इसलिए मैं बेहोश हो गया।”
2021 में देसाई जी को दिल का दौरा पड़ा और डॉक्टर ने उन्हें यह काम बंद करने की सलाह दी। वे काम करते रहे और एक साल बाद उन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगी। जब वे ये छड़ें गर्म करते हैं तो उनके परिवार का कोई भी सदस्य घर में नहीं रहता।
उनकी पत्नी सुशीला, जो लगभग 40 वर्ष की हैं, कहती हैं, “मुझे साँस लेने में कठिनाई महसूस होती है।”
इस बीच, उनके वाद्ययंत्रों की कम होती माँग और कम कमाई ने भोपा जी को बहुत दुख पहुँचाया है, जिनको रावण हत्था बनाने में 15 दिन का समय लगता है, और जिसके लिए उन्हें केवल 3,000-5,000 भारतीय रुपए (35-47 डॉलर) ही मिलते हैं।
वह पूछते हैं, “जब कोई भी संगीत वाद्ययंत्र के लिए अच्छी कीमत नहीं देना चाहता, तो मैं स्वच्छ ऊर्जा का कोई भी स्रोत कैसे खरीद पाउँगा?”
जैसलमेर में कलाकार मार्च से जून तक रावण हत्था बनाते हैं, जिस समय इस क्षेत्र में भीषण गर्मी के कारण पर्यटन में भारी गिरावट देखी जाती है।
भोपा जी बताते हैं कि, “पिछले तीन वर्षों से यहाँ की गर्मी असहनीय हो गई है।” उन्होंने अपने हाथों से एक हज़ार से भी ज़्यादा रावण हत्थे बनाए हैं, जिन्हें फ्रांस, जर्मनी और कई यूरोपीय देशों से आने वाले पर्यटक खरीदते हैं।
इसके बावजूद उनके पास इस वाद्य यंत्र को बनाने की विधि सीखने कोई नहीं आया है। आज जैसलमेर में केवल मुट्ठी भर कलाकार ही रावण हत्था बनाते हैं। उनके बच्चे और पड़ोसी अक्सर उन्हें साँस लेने में तकलीफ, खांसी और आंखों की रोशनी कम होने से जूझते हुए पाते हैं।
वह बताते हैं कि, “स्वास्थ्य संबंधी खतरों के कारण युवा पीढ़ी इस क्षेत्र में काम नहीं करना चाहती है।”
महाराष्ट्र के कोडोली गांव के बांसुरी कारीगर दिनकर आइवले जी की 2021 में फाइब्रोसिस से मृत्यु हुई, जो तब होता है जब फेफड़ों के टिश्यू यानी ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और उन पर जख्मों के निशान बन जाते हैं और इसके कारण साँस लेने में तकलीफ होने लगती है।
आइवले जी ने बेहतरीन बांसुरियाँ बनाने में अपनी ज़िंदगी के लगभग 150,000 घंटों से ज़्यादा का समय बिताया है।
जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें बांसुरी बजाते समय साँस लेने में बहुत मुश्किल महसूस होने लगी थी, जो एक खतरनाक स्थिति का संकेत था, लेकिन उन्होंने कभी भी बांसुरी बजाना नहीं छोड़ा।
2019 में उन्होंने मुझे बताया था, “अपने स्वास्थ्य से ज़्यादा मुझे इस बात की चिंता है कि यह कला मेरे साथ ही खत्म हो जाएगी और मैं नहीं चाहता कि ऐसा हो।”
अल्प समाधान
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के अध्ययनों से पता चला है कि इंसानों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने 2022 और 2023 में दक्षिण एशिया में गर्मी की लहरों को बहुत ज़्यादा गर्म कर दिया है और भविष्य में ऐसा होने की संभवना को 30 गुना तक बढ़ा दिया है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में हर साल 20 लाख से ज़्यादा लोग वायु प्रदूषण से मरते हैं, साथ ही भीषण गर्मी की स्थिति इसे और बदतर बना रही है।
सिंह ने बताया कि वायु की गुणवत्ता की निगरानी करने वाली प्रणाली को मजबूत बनाया जाना चाहिए और शहरों से बाहर भी इसका विस्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने लोगों को खराब मौसम की गतिविधयों के बारे में चेतावनी देकर सावधान करने और साथ ही ऐसी असुरक्षित आबादी की पहचान करने के लिए नियमित स्वास्थ्य जाँच करने का भी सुझाव दिया है। ऐसी आपातकालीन स्थिति के दौरान ज़रूरी दवाओं का समय पर मिलना भी सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण है।
वह बताती हैं कि, “इस स्थिति में सबसे बड़ा कदम सरकार द्वारा ही उठाया जा सकता है। उन्हें उच्च उत्सर्जन और तापमान पर अंकुश लगाने के लिए कड़े विनियम बनाने होंगे।”
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट 2024 के अनुसार, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से होने वाली ओज़ोन संबंधी सभी मौतों में से लगभग 50% भारत में दर्ज की गईं हैं, और उसके बाद चीन और बांग्लादेश आते हैं।
अस्थमा के अलावा, भोपा जी में अब सीओपीडी के लक्षण भी दिखाई देने लगे हैं। इसके बावजूद वह आज भी लकड़ी को जलाकर वाद्ययंत्र बना रहे हैं।वे कहते हैं, “मुझे पता है कि यह कला एक दिन मुझे मार डालेगी। लेकिन अगर मैं वाद्ययंत्र बनाना छोड़ दूँ, तो मैं भूख से मर जाऊँगा। इसका कोई समाधान नहीं है।”